मध्य प्रदेश सरकार सहकारी समितियों में 10 वर्षों बाद आरक्षण व्यवस्था में बदलाव करने जा रही है। अब अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और OBC वर्गों के लिए 50 फीसदी पद आरक्षित होंगे। सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 48 (3) में संशोधन प्रस्तावित है, जिसे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा।
यदि शीतकालीन सत्र के पहले चुनाव कराने की स्थिति बनती है तो अध्यादेश के माध्यम से इस व्यवस्था को प्रभावी कर दिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु –
- 2013 के पहले की आरक्षण प्रणाली फिर से लागू होगी।
- एससी, एसटी, ओबीसी के लिए 50% पद आरक्षित होंगे।
- सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 48 (3) में संशोधन।
मध्य प्रदेश सरकार 10 वर्ष बाद फिरसे सहकारी समितियों में आरक्षण की व्यवस्था में परिवर्तन करने जा रही है। अब फिर एससी, एसटी और ओबीसी को प्रतिनिधित्व मिलेगा। वर्ष 2013 के पहले यही व्यवस्था लागू थी, लेकिन बाद में यह प्रावधान कर दिया गया था कि समिति के संचालक मंडल में तीनों आरक्षित वर्ग से केवल एक ही सदस्य रह सकता है।
गड़बड़ा गया था प्रतिनिधित्व
इस व्यवस्था से प्रतिनिधित्व गड़बड़ा रहा था, इसलिए फिर से एमपी सरकार ने पुरानी व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 48 (3) में संशोधन किया जाएगाा। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में संशोधन विधेयक प्रस्तुत होगा और यदि आवश्यकता हुई तो अध्यादेश के माध्यम से भी व्यवस्था को प्रभावी किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश में 4523 सहकारी समितियां –
मध्य प्रदेश में 4,523 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इसके अलावा उपभोक्ता भंडार, विपणन, गृह निर्माण सहित अन्य क्षेत्रों की समितियों को मिलाकर लगभग 10 हजार समितियां हैं। वर्ष 2013 के सहकारी समितियों के चुनाव तक यह व्यवस्था थी कि समिति के संचालक मंडल के सदस्यों की कुल संख्या में से आधे आरक्षित वर्ग से लिए जाएंगे। इसमें भी संबंधित समिति के कुल सदस्यों में जिसका जितना अनुपात होगा, उसके अनुसार आरक्षण मिलेगा।
इसमें अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) शामिल था, जिस संस्था में एक चौथाई इससे अधिक किंतु आधे से कम सदस्य एससी, एसटी या ओबीसी के हों, वहां सभी वर्गों के लिए एक-एक सीट आरक्षित करने का प्रावधान था। जहां तीनों वर्गों की सदस्य संख्या एक चौथाई से कम है,वहां केवल एक सदस्य के लिए स्थान आरक्षित करने की व्यवस्था थी। वर्ष 2011 में हुए संविधान संशोधन के बाद जारी गाइडलाइन में यह प्रावधान कर दिया गया कि केवल एक पद आरक्षित वर्ग के लिए रखा जाएगा। इसके कारण समीकरण गड़बड़ा रहे थे।
अब सहकारिता विभाग ने तय किया है कि पुरानी व्यवस्था को ही लागू किया जाएगा। इसमें जनसंख्या के अनुपात में संचालक मंडल में सदस्यों की संख्या निर्धारित होगी।